जगत से ग्लानी हुई मन में
जगत से ग्लानी हुई मन में, (चले हैं रजा बन जोगी बन में-2)-2 चले हैं रजा बन जोगी बन में यहाँ फूलों की सेज पे सोना, यहाँ फूलों की यहाँ फूलों की सेज पे सोना, घास पात का वहां बिछोना बोझ बुढ़ापे का अब ढोना, कठिन है निर्जन में चले हैं रजा बन जोगी बन में जगत से ग्लानी हुई मन में, (चले हैं रजा बन जोगी बन में-2) माया महल दास और दासी, माया महल माया महल दास और दासी, त्याग चले बनकर सन्यासी मोक्ष प्राप्ति का जतन करेंगे, डूब निरंजन में चले हैं रजा बन जोगी बन में जगत से ग्लानी हुई मन में, (चले हैं रजा बन जोगी बन में-2)