सोमवार, 12 दिसंबर 2016

करलो करलो चरों धाम


तीरथ की महिमा बड़ी,मन को मिले प्रकाश
भक्ति और श्रद्धा बढे, आस बने विशाल
करलो करलो चरों धाम, मिलेंगे कृष्ण मिलेंगे राम-2
जीवन सफल उसी का समझो, जिसने किया ये काम
करलो करलो चरों धाम, मिलेंगे कृष्ण मिलेंगे राम-2

बसा हिमालय पर उत्तर में, पावन बद्रीनाथ
नारायण ने यहीं तपस्या, की थी नर के साथ
हे नाथ नारायण वासुदेव हे नाथ नारायण वासुदेव-4
बसा...................नारायण...................
सागर मंथन की देवों में, यही हुई थी बात
लिया मोहिनी रूप दिया, अमृत देवों के हाथ
सच की जय को ही कहते हैं देवासुर संग्राम
करलो….........…......…मिलेंगे..............

दक्षिण में सागर तट पर रामेश्वर, तीर्थ महान
राम चंद्र ने यहाँ किया शिव, महिमा का गुणगान
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय-4
दक्षिण....................राम चंद्र........................
यहीं विजय के लिए राम ने, किया शक्ति का आव्हान
देवी हुई प्रसन्न दे दिया, मनचाहा वरदान
बिगड़े काम बनाये प्रभु जी भक्त भजे हरिनाम
करलो….........…......…मिलेंगे..............

जगन्नाथ का धाम बसा, पूरब में सागर तट पर
स्वयं कृष्ण की इच्छा से हे, मन्दिर बना मनोहर
जगन्नाथ कल्याण वे जगन्नाथ साई राम वे-4
जगन्नाथ………………. स्वयं……………………………..
कृष्ण और बलराम शुभद्रा, की झांकी अति सुंदर
मिलकर सब खींचते देव रथ, श्रद्धा से नारी नर
माथे धुल चढ़ाओ इस धरती को करो प्रणाम
करलो….........…......…मिलेंगे..............

हे/ पश्चिम तट की पूरी द्वारका, बनी स्वर्ग का द्वार
रचना है ये लिलाधर की, लीला का विस्तार
पश्चिम....................रचना.......................
वंशी चक्र सुदर्शन जिसके, दोनों थे सृंगार
जिसकी गीता का आभारी, हे सारा संसार
धरती को हे स्वर्ग बनाते,मिलकर चारों धाम
करलो….........…......…मिलेंगे..............

मंगलवार, 27 सितंबर 2016

जगत से ग्लानी हुई मन में

जगत से ग्लानी हुई मन में, (चले हैं रजा बन जोगी बन में-2)-2
चले हैं रजा बन जोगी बन में
यहाँ फूलों की सेज पे सोना, यहाँ फूलों की
यहाँ फूलों की सेज पे सोना, घास पात का वहां बिछोना
बोझ बुढ़ापे का अब ढोना, कठिन है निर्जन में
चले हैं रजा बन जोगी बन में
जगत से ग्लानी हुई मन में, (चले हैं रजा बन जोगी बन में-2)

माया महल दास और दासी, माया महल
माया महल दास और दासी, त्याग चले बनकर सन्यासी
मोक्ष प्राप्ति का जतन करेंगे, डूब निरंजन में
चले हैं रजा बन जोगी बन में
जगत से ग्लानी हुई मन में, (चले हैं रजा बन जोगी बन में-2)








रविवार, 25 सितंबर 2016

सतगुरु मैं तेरी पतंग

सतगुरु मैं तेरी पतंग, सतगुरु मैं तेरी पतंग
सतगुरु मैं तेरी पतंग, सतगुरु मैं तेरी पतंग
(हवा विच उडदी जावांगी-2) (हवा विच उडदी जावांगी-2)
बाबा डोर हथों छड़ी न मैं, कटी जावांगी-2
साईंयां डोर हथों छड़ी न मैं, कटी जावांगी-2
(सतगुरु मैं तेरी पतंग-2) (बाबा मैं तेरी पतंग-2)

बड़ी मुश्किल दे नल मिलिया, मैनू तेरा दवारा है , बाबा तेरा दवारा है-2
मैनू इको तेरा आसरा, नाल तेरा सहारा है , बाबा तेरा सहारा है-2
(हुण तेरे ही भरोसे-4) (बाबा तेरे ही भरोसे-4)
(हवा विच उडदी जावांगी, हवा विच उडदी जावांगी-2)
बाबा डोर हथों छड़ी न मैं, कटी जावांगी-2
साईंयां डोर हथों छड़ी न मैं, कटी जावांगी-2
सतगुरु मैं तेरी पतंग, सतगुरु मैं तेरी पतंग-2
बाबा मैं तेरी पतंग, बाबा मैं तेरी पतंग -2

ऐना चरना कमला नालो, मैनू दूर हटायीं ना, बाबा दूर हटायीं ना-2
इस झूठे जग दे अंदर, मेरा पेंचा लाइ ना, बाबा पेंचा लाइ ना-2
(जे कट गयीं ता सतगुरु-4) (फिर मैं लुट्टी जावांगी-4)
बाबा डोर हथों छड़ी न मैं, कटी जावांगी-2
साईंयां डोर हथों छड़ी न मैं, कटी जावांगी-2
सतगुरु मैं तेरी पतंग-2 सतगुरु मैं तेरी पतंग-2
बाबा मैं तेरी पतंग, बाबा मैं तेरी पतंग -2

आज मलिया बुहा आके, मैं तेरे द्वार दा , बाबा तेरे द्वार दा-2
हथ रख दे इक वारी तू, मेरे सर पे प्यार दा, बाबा सर पे प्यार दा-2
(फिर जनम मरन दे गेडे-4) (तो मैं बचदी जावांगी-4)
बाबा डोर हथों छड़ी न मैं, कटी जावांगी-2
साईंयां डोर हथों छड़ी न मैं, कटी जावांगी-2
सतगुरु मैं तेरी पतंग-2 सतगुरु मैं तेरी पतंग-2
सतगुरु मैं तेरी पतंग...................................



सोमवार, 4 जुलाई 2016

ये तो @ सच है की भगवान है

ये तो सच है की भगवान है
है मगर फिर भी अन्जान है
धरती पे रूप माँ-बाप का
उस विधाता की पहचान है

जन्मदाता हैं जो, नाम जिनसे मिला
थामकर जिनकी उंगली है बचपन चला
कांधे पर बैठ के, जिनके देखा जहां
ज्ञान जिनसे मिला, क्या बुरा, क्या भला
इतने उपकार हैं क्या कहें
ये बताना न आसान है
धरती पे रूप...

जन्म देती है जो, माँ जिसे जग कहे
अपनी संतान में, प्राण जिसके रहे
लोरियां होंठों पर, सपने बुनती नज़र
नींद जो वार दे, हँस के हर दुःख सहे
ममता के रूप में है प्रभू
आपसे पाया वरदान है
धरती पे रूप...

आपके ख्वाब हम, आज होकर जवां
उस परम शक्ति से, करते हैं प्रार्थना
इनकी छाया रहे, रहती दुनिया तलक
एक पल रह सकें हम न जिनके बिना
आप दोनों सलामत रहें
सबके दिल में ये अरमान है
धरती पे रूप...


रविवार, 19 जून 2016

तुम्हीं हो माता, पिता तुम्ही हो, तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो

संगीत.......१२३
तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो
तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो
संगीत.......१२३
तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो
तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो
तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो
तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो
तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो
तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो
 
संगीत.......१२३
तुम्ही हो साथी तुम्ही सहारे
कोई न अपना सिवा तुम्हारे
कोई न अपना सिवा तुम्हारे
तुम्ही हो साथी तुम्ही सहारे
कोई न अपना सिवा तुम्हारे
तुम्ही हो नय्या तुम्ही खिवय्या 
तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो
तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो
तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो
 
संगीत.......१२३
जो खिल सके ना वो फूल हम हैं
तुम्हारे चरनों की धूल हम हैं
तुम्हारे चरनों की धूल हम हैं
जो खिल सके ना वो फूल हम हैं
तुम्हारे चरनों की धूल हम हैं
दया की दृष्टि सदा ही रखना 
तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो
तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो
तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो
तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो
तुम्ही हो बंधु सखा तुम्ही हो
 
 
 
SONG LINK:
https://www.youtube.com/watch?v=aLU_rCnVYtE
 

KARAOKE WITH CHORUS LINK:

मंगलवार, 31 मई 2016

या कुंदेंदु तुषार हार धवला या शुभ्र वृस्तावता

या कुंदेंदु तुषार हार धवला या शुभ्र वृस्तावता ।

या वीणा वर दण्ड मंडित करा या श्वेत पद्मसना ।।

या ब्रह्माच्युत्त शंकर: प्रभृतिर्भि देवै सदा वन्दिता ।

सा माम पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्या पहा ॥१॥

भावार्थ : जो विधा की देवी भगवती सरस्वती कुंद के फूल चंद्रमा हिमराशी और मोती के हार की तरह
श्वेत वर्ण की है और जो श्वेत वस्त्र धारण करती है, जिनके हाथ में वीणा-दंड शोभाग्य है, जिन्होंने श्वेत
कमलों पर अपना आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा,विष्णु एंव शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित
है वही सम्पूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर क्र देने वाली माँ सरस्वती आप हमारी रक्षा करें


आँख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता।

— चाणक्य

गुरुवार, 26 मई 2016

जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को, मिल जाये तरुवर कि छाया

जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को, मिल जाये तरुवर कि छाया
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, मैं जबसे शरण तेरी आया, मेरे राम
सूरज की गर्मी से...

भटका हुआ मेरा मन था कोई मिल ना रहा था सहारा
लहरों से लड़ती हुई नाव को जैसे मिल ना रहा हो किनारा
मिल ना रहा हो किनारा...

उस लड़खड़ाती हुई नाव को जो, किसी ने किनारा दिखाया
ऐसा ही सुख ...

शीतल बने आग चंदन के जैसी राघव कृपा हो जो तेरी
उजियाली पूनम की हो जाएं रातें जो थीं अमावस अंधेरी
जो थीं अमावस अंधेरी...

युग-युग से प्यासी मरुभूमि ने जैसे सावन का संदेस पाया
ऐसा ही सुख ...

जिस राह की मंज़िल तेरा मिलन हो उस पर कदम मैं बढ़ाऊं
फूलों में खारों में, पतझड़ बहारों में मैं न कभी डगमगाऊं
मैं न कभी डगमगाऊं...

पानी के प्यासे को तक़दीर ने जैसे जी भर के अमृत पिलाया
ऐसा ही सुख ...

जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को, मिल जाये तरुवर कि छाया
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, मैं जबसे शरण तेरी आया, मेरे राम


नन्हा सा फूल हूँ मैं चरणों की धूल हूँ मैं आया हूँ मैं तो तेरे द्वार प्रभुजी मेरी पूजा करो स्वीकार

  रेसा रेमा रेसा रेमा रेसा रे रे रे सानि सारे सानि सारे सानि सा सा सा रेसा रेमा रेसा रेमा रेसा रे रे रे सानि सारे सानि सारे सानि सा सा सा...