या कुंदेंदु तुषार
हार धवला या शुभ्र वृस्तावता ।
या वीणा वर दण्ड
मंडित करा या श्वेत पद्मसना ।।
या ब्रह्माच्युत्त
शंकर: प्रभृतिर्भि देवै सदा वन्दिता ।
सा माम पातु सरस्वती
भगवती नि:शेष जाड्या पहा ॥१॥
भावार्थ : जो विधा
की देवी भगवती सरस्वती कुंद के फूल चंद्रमा हिमराशी और मोती के हार की तरह
श्वेत वर्ण की है और
जो श्वेत वस्त्र धारण करती है, जिनके हाथ में वीणा-दंड शोभाग्य है, जिन्होंने
श्वेत
कमलों पर अपना आसन
ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा,विष्णु एंव शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित
है वही सम्पूर्ण
जड़ता और अज्ञान को दूर क्र देने वाली माँ सरस्वती आप हमारी रक्षा करें
आँख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं
दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को
कहीं भी दोष नहीं दिखता।
— चाणक्य
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