चार दिनों की प्रीत जगत में चार दिनों के नाते हैं
पार्थ इस लोक का, कोई पदार्थ रे,संग तेरे परलोक न
जाए
पिछले जनम का, कोई नाता, अगले जनम में याद ना आये
स्मिर्तियों का बोझा ढोने से, विश्मृति का वरदान
बचाए
हर जन्म के नाते याद रखे तो, प्राणी पागल ही हो
जाए
चार दिनों की प्रीत जगत में, चार दिनों के नाते हैं-२
पलकों के पर्दे पडते ही, सब नाते मिट जाते हैं
जिनकी चिन्ता में तू जलता, वे ही चिता जलाते हैं-२
जिन पर रक्त, बहाये जलसम, जल में वही बहाते हैं-२
घर के स्वामी के जाने पर, घर की शुद्धि कराते हैं-२
पिंड दान कर प्रेत आत्मा से अपना पिंड छुडाते हैं-२
इन नातों के मोह में पडके, मुरख जन्म गवांते हैं
-२
तोड़ इन नातों कि बेडी जो, कायर तुझे बनाते हैं -२
चौथे से चालीसवें दिन तक, हर एक रस्म निभाते हैं-२
म्रतक के लौटआने का कोई, जोखिम नही उठाते हैं-२
आदमी के साथ उसका खत्म किस्सा हो गया
आग ठण्डी हो गई चर्चा भी ठण्डा हो गया
चलता फिरता था जो कल तक, बनके वो तस्वीर आज
लग गया दीवार पर मजबूर, कितना हो गया-२
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